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Showing posts from May, 2023

speak only necessary / utna hi bole jitna anivaary ho / वही बोले जो अनिवार्य हो

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  वही बोले जो अनिवार्य हो हमारी बुद्धि (mind) विकृत (deformed) है क्योंकि इतने विचारों (thoughts) का बोझ है विचार ही विचार है , जैसे आकाश में बादल ही बादल छाए हो आकाश खो जाए दिखाई ही न दे सूर्य का कोई दर्शन न हो ऐसी हमारी बुद्धि हैं विचार ही विचार हैं उसमे जो बुद्धि की प्रतिभा (brilliance) है , जो आलोक (enlightenment) है खो गया हैं छिप जाता है एक बादल हट जाए तो आकाश का टुकड़ा दिखाई पड़ना शुरू हो जाता हैं छिद्र हो जाए बादलों में तो प्रकाश की रोशनी आनी शुरू हो जाती है सूरज के दर्शन होने लगते है ठीक ऐसे ही बुद्धि है जब तक विचार से बहुत ज्यादा आवरक  (covered) न हों जाए, एक परत नही है विचार की बहुत सारी परते हैं जैसे कोई प्याज को छीलता चला जाए तो परत के भीतर परत ठीक ऐसे हीं विचार परत की तरह होते हैं एक विचार की परत को हटाए तो दूसरी सामने आ जाती है दूसरे को हटाएं तीसरी आ जाती है ये परत दर परत (layer to layer) विचार ऐसे ही चलते रहते है जो हमारी लंबी यात्रा में इकट्ठे हो जाते है यात्रा बहुत लंबी हो जाए और यात्री को पता ही न हो की वो कहा खो गया है l ध्यान स्नान है बुद्धि का। और ज

अतीत का बोझ /burden of the past / atit ka bojh- how to overcome it by OSHO Vani and Osho thoughts with LORD BUDDHA story

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अतीत का बोझ/ burden of the past   ए क बहुत ही आश्चर्यजनक(amazing) तथ्य दिखाई पड़ता है वो ये कि मनुष्य का पूरा व्यक्तित्व एक तनाव, एक खिंचाव और एक बोझ है। कौनसा बोझ है मनुष्य के चित्त पर? किस पत्थर के नीचे आदमी दबा है? सूरज की किरणों की तरफ देखें या वृक्ष के हरे पत्तों की तरफ या आकाश की तरफ , आंखें उठाएं कहीं कोई बोझ नही है सब तरफ निर्भार है, कहीं कोई तनाव नहीं है, मनुष्य के मन पर। सुना हैं मैंने एक तेज़ी से दौड़ती हुई ट्रेन के भीतर एक आदमी बैठा हुआ था जो भी उस आदमी के करीब से निकलता हैरानी से और गौर से उसे देखता उसने काम ही ऐसा कर रखा था वह अपना बिस्तर और अपनी पेटी अपने सिर पर रखे हुए था कोई भी उससे पूछता की क्या हुआ मित्र, वह कुछ स्वयं सेवक किस्म का आदमी था उसने कहा कि मैं अपना बोझ इस गाड़ी पर क्यों रखूं इसलिए अपने सिर पर रख लिया है लेकिन उसे ये नहीं मालूम की वो खुद गाड़ी पर सवार हैं और अपने सिर पर बोझ रखे हुए वो बोझ भी गाड़ी पर सवार है लेकिन जिस बोझ को वो नीचे रखकर आराम से बैठ सकता था उस बोझ को वो सिर पर रखें हुए है इस ख्याल से कि अपनी सेवा स्वयं करनी चाहिए। गाड़ी भाग रही है

अकेले रहो खुश रहो

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                        अकेले रहो खुश रहो   अकेलापन हमारी अंतान्यांतिक नियति ( ultimate destiny ) है उससे बचने का कोई उपाय नहीं , अकेले हम है और बचने की हम जितनी चेष्टा करते हैं वही संसार है और बचने की चेष्टा सब व्यर्थ हो जाती हैं वही वैराग्य ( quietness ) है और हम बचने की सारी चेष्टा छोड़ देते हैं वही तो ध्यान है। अकेले हम है और चाहते है की अकेले न हो यही से भूल शुरू होती है , क्यों ? अकेले होने में क्या कठिनाई है ? अकेले होने मे बैचेनी क्या है ? अकेले होने मे दुःख कहां है ? अकेले होने मे भय क्या है ? अकेले होने में बुराई क्या है ? जानने वाले तो कुछ और कहते हैं पूछो नानक से   ,   कबीर से , मलुक से जानने वाले तो कुछ और ही कहते है ,  कहते है उस परम एकांत में ही परम आनंद की वर्षा होती है , अमृत के मेघ बरसते है , हजार   –  हजार सूरज निकलते है उस परम एकांत में ही। लेकिन आदमी भाग रहा है , भाग रहा है अकेले से डर रहा है हमें बचपन से ही अकेले होन