speak only necessary / utna hi bole jitna anivaary ho / वही बोले जो अनिवार्य हो
वही बोले जो अनिवार्य हो
हमारी बुद्धि (mind) विकृत (deformed) है क्योंकि इतने विचारों (thoughts) का बोझ है विचार ही विचार है, जैसे आकाश में बादल ही बादल छाए हो आकाश खो जाए दिखाई ही न दे सूर्य का कोई दर्शन न हो ऐसी हमारी बुद्धि हैं विचार ही विचार हैं उसमे जो बुद्धि की प्रतिभा (brilliance) है, जो आलोक (enlightenment) है खो गया हैं छिप जाता है एक बादल हट जाए तो आकाश का टुकड़ा दिखाई पड़ना शुरू हो जाता हैं छिद्र हो जाए बादलों में तो प्रकाश की रोशनी आनी शुरू हो जाती है सूरज के दर्शन होने लगते है ठीक ऐसे ही बुद्धि है जब तक विचार से बहुत ज्यादा आवरक (covered) न हों जाए, एक परत नही है विचार की बहुत सारी परते हैं जैसे कोई प्याज को छीलता चला जाए तो परत के भीतर परत ठीक ऐसे हीं विचार परत की तरह होते हैं एक विचार की परत को हटाए तो दूसरी सामने आ जाती है दूसरे को हटाएं तीसरी आ जाती है ये परत दर परत (layer to layer) विचार ऐसे ही चलते रहते है जो हमारी लंबी यात्रा में इकट्ठे हो जाते है यात्रा बहुत लंबी हो जाए और यात्री को पता ही न हो की वो कहा खो गया हैl ध्यान स्नान है बुद्धि का। और जो ध्यान नही संभाल पा रहा है उसकी बुद्धि कचरे से भर जाएगी स्वाभाविक (natural) है।
हमारी जिंदगी में मौन (silence) का बहुत मूल्य हैं मौन का अर्थ हैं आप बाहर और भीतर बोलना बंद कर रहे हैं क्योंकि बोलना बुद्धि की बड़ी गहरी प्रक्रिया (process) हैं बोलने के द्वारा बुद्धि बहुत कुछ इकट्ठा कर लेती है और जो भी आप बोलते है वो आप सिर्फ बोलते ही नही है बोला हुआ आप सुनते भी है जब आप एक ही बात बार बार बोलते रहते है तो आपको पता नही आप बार बार सुन भी रहे है और आप कचरा इकट्ठा कर लेते है सुबह अखबार पढ लिया तो दिन भर लोग वही बोले चले जाते है वही व्यर्थ (meaningless) की बात जिसका कोई मूल्य नही है जिससे किसी को कोई लाभ नहीं हो रहा वो आप बोले चले जा रहे है अगर आप अपने चौबीस घंटो का विश्लेषण (analysis) करे तो आप पाएंगे की 99% तो कचरा था जो आप न बोलते तो किसी का कोई हर्ज़ न था। ध्यान रहे जिसे बोलने से किसी को कोई लाभ नही हुआ है उसे बोलने से हानि निश्चित हुई है क्योंकि न केवल आपने दूसरे के मन में कचरा डाला है जोकि हिंसा है जिसका कोई मूल्य नही है वो आप बोलके दूसरे के मन मे डाल दिए है और जब आप बोल रहे थे तो आपने फिर से सुन लिया वो आपके भीतर दोबारा गहरा हो गया फिर conditioning (kisi ke behave ko control krna) हो गया अगर आप एक असत्य को भी बार बार बोलते रहे तो आप ये भी भूल जाएंगे कि वो असत्य है ओशो ने कहा हैं कि कोई भी असत्य को सत्य करना हो तो एक ही तरकीब है, उसे बोलते चले जाओ दूसरे मान लेंगे ऐसा नही है आप खुद भी मान लेंगे।
इसलिए वही बोले जो अपरिहार्य (very important) हो जिसके बिना जिंदगी चल ही न सके ये दुनिया बड़ी शांत हो जाए अगर लोग बस अपरिहार्य को ही बोले व्यर्थ को न बोलें। व्यर्थ को बोलके बड़ी झंझट में पड़ते है क्योंकि बोलके आप ही थोड़े बोलते है दूसरा भी जवाब देगा थोड़ा आप सोचे कि अगर आप मौन रहे होते तो कितने उपद्रव (disturbance) आपके जीवन से बच गए होते बोलके न मालूम कि आप कितने उपद्रव में पड़ रहे हो फिर उनको बचाने के लिए और बोलना पड़ता है ऐसे ही ये सिलसिला बढ़ता चला जाता है एक दुष्चक्र (vicious circle) बन जाता है जिसका कोई अंत नही इसलिए समझदार चुप हो जाता है उतना ही बोलता है जितना अनिवार्य है और इतना ही बोलता है जिससे किसी का हित हो सके अन्यथा मौन रह जाता हैl
वाणी को जब आप बाहर से रोकेंगे तो भी जरूरी नही भीतर रुक जाए क्योंकि आप दूसरे से न बोलें तो खुद से बोलते रहते है बैठे है खुदी से बात चल रही है, ये खुदी से चलने वाली बात भी conditioning निर्मित करती है क्योंकि जब आप अपने से बोल रहे है तब भी मन सुन रहा है इसलिए खुद से भी बोलना बंद करे वाणी बड़ा उपद्रव है जरूरी नही उपद्रव ही हो हमने उपद्रव बना लिया है भीतर भी धीरे धीरे बोलना बंद करे चुप्पी साधें मौन को फैलने दे जितना ज्यादा मौन फैलेगा उतना उतना मन विसरित होता चला जाएगा जैसे जैसे मौन घना होगा वैसे वैसे बादल फैलने लगेंगे जगह जगह से छिद्र (hole) टूटने लगेंगे और रोशनी भीतर आने लगेगी असल मे वही बोलने का अधिकारी है जो भीतर चुप हो गया हो क्योंकि उसके बोलने का कुछ मूल्य होगा।
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