What is Ultimate Reality ? अंतिम सत्य क्या है ?
What is Ultimate Reality?
ये सवाल क्या है? ये सवाल कहां से
आया? इस सवाल का जवाब ढूंढने के लिए रास्ते कौन कौन से थे? कौन किस रास्ते पर चला? क्या जवाब ढूंढ
के लाया? और क्या आज उन जवाबों की कोई अहमियत हमारे
सामने बची है? अगर बची है तो कितनी बची है? हम ये सब समझेंगे –
Ultimate Truth
Ultimate truth में ही ultimate existence जिसका mean है वो कौन सी चीज़ है जिससे ये सब कुछ बना है ये
सारी दुनियां कैसे बनी किसने बनाई किस process से बनी पर जब हम दर्शन की बारीकियों में जाते है तो सत्य और सत्ता truth and existence ये भीं अलग शब्द हो जाते हैं। वैसे तो philosophy की कई branch है but
philosophy की जो basic branch है वह metaphysics होती है जिसमें हम
सब का interest
होता है।
Metaphysics (तत्त्वमीमांसा) का simple meaning ये है कि इस universe के संबंध में अंतिम
प्रश्नों के जवाब देना। Metaphysics को ही मोटे तौर पर
एक और नाम से भी जानते है Ontology।
Metaphysics में पहला सवाल universe के बारे में आता है कि इसे किसने बनाया और दूसरा सवाल soul के बारे में consciousness basically और तीसरा सवाल है God के बारे में। Cosmos – cosmology (सृष्टि मीमांसा), soul- psychology (मनोविज्ञान), God- theology ईश्वर मीमांसा।
वैसे तो इसका जवाब किसी के पास नही है पर इसमें
सबके अपने-अपने opinion है आज हम उन्हीं opinion को देखेंगे जैसा कि हमे पता है शुरूआती दौर में इंसान को universe की इतनी समझ नहीं थी लेकिन इस पूरे structure को समझने की कोशिश
वह इंसान कर रहा है लेकिन उसके पास कोई scientific temper नही है साथ ही न वो कोई धार्मिक व्यक्ति है क्योंकि उस समय तक
धर्म ही नही आया था। लेकिन एक basic बुनियादी दिमाग लेकर
समझना चाह रहा है कि मैं कहां पटक दिया गया हूं? मैं किस दुनियां
में हूं? कैसे समझू कि ये दुनियां क्या है कैसे बनी और मेरी
इसमें क्या स्थिति है? मेरे आस पास जो लोग मर रहे है क्या वो खत्म ही हो गए हम आए कहा से थे जायेंगे कहां कुछ नहीं पता है? अब
ऐसे में लोग क्या करेंगे सोचेंगे जिज्ञासा से भर जाते है ? जिज्ञासा से भरे हुए इस
व्यक्ति के पास input बहुत कम है और उन input की processing अपनी उन क्षमताओं से जो क्षमताएं ईश्वर ने प्रकृति ने उसको दी है उनसे processing करेगी और तब जो निचोड़ निकलेगा ज्ञान की दुनिया
में उसको आप निष्कर्ष (conclusion) कहते है जैसे honeybee input बाहर से collect करके उनकी processing करती है। But honeybee concept रख सके इसके लिए जरूरी
है बाहर से input मिलना जरूरी है और अगर
इनपुट ही न हो तब क्या करें या कम हो तब क्या करें तो (spider) मकड़ी बनना पड़ता है और मकड़ी की ख़ास बात ये
है कि मकड़ी जो जाला बनाती है उस जाला बनाने में processing भी वो करती है और उस जाला बनाने का कच्चा माल(raw material) है वो भी अपने अंदर से निकलती है यानी causation ( कारणता) की दुनिया में वो material cause भी खुद है और efficient cause भी खुद है इसलिए जब तक हमारे पास बहुत सारे inputs न हो, बहुत सारे facts न हो हम मकड़ी बनके काम करते है और mostly philosophers मकड़ी के रास्ते पर चलते है वो अपने अंदर से कल्पना (imaginations) करते है उन कल्पना ओ को अपनी reasoning power से justify करते है और processing करते है, doubts निकालते है उन्हें ठीक करते है और यही कारण है
अलग-अलग दार्शनिक एक ही चीज़ की व्याख्या अलग-अलग तरीके से करते है और वो व्याख्या एक दम logical होते है।
Science का भीं अंतिम प्रश्न है कि ब्रह्मांड कैसे बना,
दर्शन का भी अंतिम प्रश्न है कि ब्रह्मांड कैसे बना, धर्मों को भी इसमें रूचि है
कि ब्रह्मांड कैसे बना? अंतर उनके रास्ते का है, अंतर उनके method का है।
धर्म आस्था और faith के बल पर काम करता है। धर्म आसान उत्तर को provide करता है आम आदमी को जो बहुत गहरे नहीं है, बहुत तार्किक नही है किंतु आम आदमी निश्चिंत
हो जाए ऐसे गोलमोल answer provide करता है। दर्शन तार्किक
उत्तर देता है मकड़ी के तरीके से और science आनुभविक empirical evidence इकट्ठे करने के बाद
तब judgement
निकालता है और विनम्रता से मानता है कि कल को में गलत हो
सकता हूं जैसे ही कोई new experiment मुझे गलत साबित करेगा मैं हालत हो जाऊंगा। लेकिन धर्म में इतनी आज़ादी नही होती
दर्शन में होती है विज्ञान में होती है इसलिए तीनों का मूल प्रश्न यही है, दर्शन ने इसमें क्या संभावनाएं ढूढी हमें इनको समझना
है। We
have to remember that विज्ञान बाद की बात
है लेकिन शुरुआती प्रयास दर्शन के लोग कर रहें हैl
अंतिम सत्य क्या है यानि ultimate truth/
evidence क्या है इसके लिए दो concepts है—अंतिम सत्य के number कितने है, और इसका nature कैसा है।
Number के respect में कि अंतिम सत्य कितनी हैं जिसे Pluralism
से denote करते है जिसमें कहा जाता है कि बहुत सारी अंतिम
सत्तायें हैं सरल भाषा में कहें तो लोहा भीं अंतिम सत्ता है लकड़ी भी अंतिम सत्ता है
पानी भी अंतिम सत्ता है आग भी अंतिम सत्ता है हवा भी अंतिम सत्ता है।
तो ये मान लेते है कि अंतिम सत्ताएं बहुत सारी हैं।
लेकिन धार्मिको को दर्शनिको को लगता है इतनी सारे Diversities के मूल में कुछ तो होना चाहिए। और मन करता है कि
एक पर ही सारा थोप देते है लेकिन कइयों ने माना कि अंतिम सत्ता एक है तो इन्हें monism एकवाद या monist कहते है लेकिन बहुतों ने कहा कि अंतिम सत्ता न तो
एक और न ही अनेक है वो तो दो है इनका नाम पड़ा dualism या द्वैतवाद। जिसमें एक सत्ता matter की और दूसरी सत्ता है consciousness
चेतना की।
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