Uniform Civil Code/ Muslim Personal Law/ समान नागरिक संहिता

 

Uniform civil code




हालांकि यह मुद्दा कई सालो से चर्चाओं में आता है लेकिन इसकी चर्चा हर नई सरकार आने के बाद दब जाती है। वैसे तो यह मुद्दा काफ़ी जटिल है इसकी चर्चा 1991-92 से चर्चा में आई।

Simple meaning of Uniform civil code

Uniform civil code हमारे संविधान में article 44 के तहत DPSP(directive principle of state policy) में निहित है। DPSP हमारी सरकार को बताते हैं कि वे इस बात का ध्यान रखें कि हालांकि अदालत में इन principles को हासिल नहीं कर सकते वे प्रशासन (Administration) में आधारभूत महत्व के है। इसका मतलब है कि सरकार की पूरी जिम्मेदारी है कि इन प्रावधानों पर ध्यान दें जिनमें से एक प्रावधान article 44 में हैं जिसमें लिखा है राज्य प्रयास करेगा कि पूरे देश के लिए समान नागरिक संहिता का निर्माण करें। Uniform civil code को बेहतर समझने के लिए इन तीनों को एक एक कर विभाजित करके समझते है

CODE- हम जानते है कि जब कोई कानून parliament में पारित नही होता उसे Bill कहते है लेकिन जब वह parliament में पारित हो जाता है तब उसे Act कहते है। Act ही law बनाता है, हमारे देश में कानून प्रायः Act के माध्यम से बनते है लेकिन कानून Act के अलावा और भी तरीकों से बनता है। कहीं कहीं law के sense में code चलता है। इसे code कहने का basic mean है ऐसे कानून का समुच्चय (combination) जिनको एक साथ मिलाकर देखा जाना चाहिए। जैसे IPC (Indian panel code)/ भारतीय दंड संहिता जिसमे तरह तरह के अपराध है उन सारे अपराधो को एकसाथ करके उन सबके दंडो को एक साथ लिखे जाने की प्रक्रिया ( process of clubbing all the crimes in which there are different types of crimes and writing the punishments for all of them together)

लंबे समय से चले आ रहे अलिखित, मौखिक, व्यावहारिक नियमों, प्रथाओं, परंपराओं आदि को जब कोई society सोचती है हम इसको लिखकर systematizied कर लेते है व्यवस्थित कर लेते है इस process को बोलते है codification (संहिताकरण)।

इसका simple meaning ये भी है कि हमारे देश में ऐसा कानून या कानूनों का संग्रहण होना चाहिए जिसके माध्यम से हम uniform civil मसलो पर अपनी बात रख सके एक कानून के माध्यम से काम चला सके।

Civil- हम जानते है कि कानूनी मामले दो type के होते है- civil case और criminal case Civil case में आपसी मामले आते है जबकि criminal case में person और state के बीच के मामले आते हैं। Civil cases के आपसी मामले में demand damages की होती है और criminal cases में punishment की demand होती है जो कि IPC और CrPC में निहित है।

थोड़ा और बारीकी से समझे तो

Criminal cases भी two types के होते है

1.       Substantive (तात्विक)- Indian Panel Code (IPC)

2.   Procedural (प्रकियवाद)- किसी court के लिए प्रक्रिया क्या होगी, ज़मानत कैसे होगी वगैरा वगैरा। जैसे CrPC ( code of criminal procedure), Indian evidence Act

      Civil cases भी two types के होते है

1.     Substantive- जिसमें family, property, torts के मामले आते है।

2.       Procedural-  CrPC 

खैर अगर सीधा सीधा बोला जाए तो uniform civil code को family law भीं कह सकते है।

Uniform- जैसे आपने देखा होगा कि school के बच्चे एक ही uniform में स्कूल में जाते है जिसमें सबकी dress एक जैसी होती है आख़िर ऐसा क्यों करते है?

Uniform का एक purpose यह होता है कि विभिंताएं (diversities) जो है वह विभिंताए (diversities) जो ऊंच नीच पैदा करती है वह खत्म (abolish) हो जाएं और एक similarity बन जाए और दूसरा puspose एकता (unity) है।

Uniformity का मतलब होता है चीज़ों को एक जैसा बना देना जहां तक संभव हो लेकिन uniformity का ये मतलब नही है कि सबको एक जैसा बना देना है इसका मतलब है जो basic difference सबके है उन basic difference के अनुसार इस तरह adjust करना कि सब यथासंभव एक जैसे दिखे।

Uniformity के four concept है-

*सभी के अलग अलग कानून चलने दें

*हम सबके अलग अलग कानून चलने दें लेकिन अलग कानूनों में से जो कानून भेदभाव करते है उन भेदभाव करने वाले कानूनों को ख़ारिज कर दें।

*हम एक uniform civil code बना दें जिसमें सभी को शामिल कर दें लेकिन उन मामलों में विभिन्न समुदायों को थोड़ा exceptions provide कर दें

*एक ऐसा uniform civil code लेना चाहिए जिसमें एक absolute homogeneity (समरूपता) होनी चाहिए l

फिर भी इसमें कई समस्याएं है जैसे जब विभिन्न समाज के लोग ,सामुदायिक परंपराओं के लोग जब एक साथ रहने लगते है समाज में समस्या आती है कानून को हम कैसे निश्चित करें। भारत भी तो ऐसे ही लंबे समय से बनने वाला एक देश है जो आज का भारत है तो फिर uniformity का संकट तो आना ही था। अब ऐसे में दो तरीके है-

Personal law- जो person जहां से belong करता है उस पर उसी का नियम चलेगा जैसे भारत में कोई मुस्लिम किसी भी राज्य जायेगा तो उस पर जो नियम लागू होंगे मुस्लिम वाले नियम लागू होंगे। यानि ऐसे नियम जो person के according काम करते है उनकी पहचान के अनुसार काम करते है।

Lex Loci- जैसे पहले के जमाने में सबकी परम्परा अलग अलग थी क्योंकि परिस्थितियां अलग थी अब परिस्थितियां हम सब की common है हम सब एक देश में रहते है एक समाज में रहते है तो एक ऐसा नियम जो पूरे देश में लागू होगा और देश में लागू होने वाला एकमात्र कानून ही uniform law है।

किसी देश के एकीकरण में तो यह माना जाता है जहां तक संभव हो ऐसी कोशिश करनी चाहिए कि पूरे भारत के कानून एक होने चाहिए।

अगर पूरी बात का सार देखा जाए – uniform civil code में code का mean law है, civil का mean civil मामलों में mostly for family matters और uniform का mean सबके लिए समान। हिंदुओं, मुस्लिमों, ईसाइयों यहूदियों पारसी as well as tribes सभी के लिए family के मामले में ( marriage, seperation, talaq, maintainence, adoptation, succession, inheritance) इन सारे मुद्दों पर एक व्यापक कानून होना चाहिए जो देश के सभी धर्मो के व्यक्तियों पर लागू हो तो हम कहेंगे uniform civil code ( समान नागरिक संहिता) हमारे देश में हैं। खैर ऐसा प्रावधान Europe के कई देशों में देखने को मिलता है क्योंकि उनमें uniformity का concept विकसित है।

Historical Background of Uniform Civil Code in India –

Ancient India- ancient time में हमारे यहां वेद- स्मृति के अनुसार कानून व्यवस्था चलती थी। स्मृति एक ख़ास text है जिसमें नियमों का जिक्र होता है जिनमें से सबसे प्रसिद्ध मनुस्मृति, नारदस्मृति आदि थीं।

Medieval India- आमतौर पर medieval India को मुस्लिम Era माना जाता है वो अपने साथ अपना धर्मग्रंथ भी लाए थे और अपने साथ अपना legal system भी लाए थे जिसे हम शरीयत कहते है और वो Divine Law मानते है। और जब Mugal Emporeor अपने चरम पर आया तो औरंगजेब ने जितने भी शरीयत के diverse नियम थे उन सब diversity का end करके एक ही किताब में लिखवा दिया और उस book का नाम पड़ा फतवां आलमगिरी। जिसमें काज़ी होता था जो शरीयत के अनुसार फैसले देता था। मुफ्ती new मामलों को देखता था जो criminal मामले थे उनमें शरीयत का कानून चलता था और जो civil मामले थे उनमें काज़ी अपनी intelligence के हिसाब से करता था ।

1765 में East India company ने civil rights (revenue rights) खरीद लिए जिसमें Bangal, Bihar और Odisha उनके हिस्से में आ गया। जिसमें वो land revenue को वसूलते थे और साथ ही land revenue वसूलने के process को भी वहीं देखेंगे। Warren Hesteing’s को बुलाया गया In 1772 as a governor general जिसके हाथ में revenue rights का management दिया गया तब उसने अपना 1772 में Judicial Plan दिया। जिसमें Courts formation की बात कही जिसमें criminal case को फतवा आलमगिरि को base बनाकर follow करना है। लेकिन हिंदू और मुस्लिम के civil case में intervene नहीं किया क्योंकि govern करने में problem आती British rulers को।

1781 में civil case में intervene होने लगा जिसमें हिंदू मामलो में मिताक्षरा या दयाभाग को follow किया गया और मुस्लिमों में शरीयत या फतवा आलमगीरी को follow किया गया लेकिन बाकि religions के लिए english law के according civil case treat होने लगे लेकिन criminal case में मुस्लिमों की समस्या सुलझाने में कई समस्याएं थी जैसे हमारी country में सुन्नी community के अंतर्गत हंफीह community है उसके according procedural law में यह माना जाता है कि महिलाओं की गवाही पुरुषों की गवाही के आगे कम important है और इसका मूल आधार कुरान की ही एक पंक्ति से लिया गया है फिर अगर कोई किसी की हत्या कर दे तो यह दो व्यक्तियों के बीच मामला माना जायेगा और जिसकी हत्या हुई है उसके परिवार को यह अधिकार था कि उसके परिवार वाले आरोपी को माफ़ कर सकते थे। लेकिन English Law में हत्या व्यक्ति विशेष के साथ हुई तो यह माना जाएगा कि वह state और society के विरुद्ध है। तभी इन मामलों को देखकर criminal law मामलो में english law को लाना शुरू किया धीरे धीरे विशेष रूप से procedural law में।

हालांकि विलियम हेस्टिंगस, लॉर्ड कार्नवालिस, लॉर्ड वेलेजली इन तीनों ने India में criminal cases में english law को लाने के ठीक ठाक काम किया। जैसे अब यह माना लिया जाता है कि दो व्यक्तियों के बीच हत्या का मामला सिर्फ दोनो के बीच में न मानकर राज्य के विरुद्ध माना जायेगा।

अगर मोटे तौर पर बोला जाए 1772 में लगभग 1800 AD तक criminal मामलो में english law हावी होने लगा और civil मामलो में हिंदुओ के लिए हिंदुओ के कानून और मुस्लिमों में मुस्लिमों के कानून follow किया जाता था और अन्य धर्मों के लिए english law चलने लगे।

1828 में विलियम बेंटिक के काल में 1833 का एक charter act आया जिससे situation change होने लगी वह एक सुधारवादी मानसिकता के व्यक्ति थे जिन्होंने राजा राम मोहन रॉय के साथ पहला ऐसा कानून लागू किया जो हिंदू समाज के विधानों के विपरीत था- सती प्रथा उन्मूलन अधिनियम।

लगभग उसी समय विलियम बेंटिक ने female infenticide (नवजात लड़की की हत्या) को abolish किया। उसी समय 1834 First Law commission India में आया। Law commission एक सुझाव देने की संस्था थी जिसका head मैकाले था। इसने ही IPC और Lax Loci का concept दिया।

इसी के तहत 1853 के charter act में second law commission आया जॉन रोमाली के काल में जिन्होंने CPC, CrPC,  IPC का सुझाव दिया।

CPC (code of civil procedure)- किसी भी civil मामले में अदालतें किस तरह से काम करेंगी? Process क्या होगा यह निश्चित होना चाहिए।

CrPC (criminal procedure code)- criminal मामलो में session court या magistrate court कैसे काम करेंगी, process कैसे चलेगा?

IPC(Indian Panel Code)- जो criminal मामलो में substentive law है दण्ड की व्यवस्था करेगा।

फिर 1857 revolt के 1858 act के तहत 1860 में IPC लागू कर दिया जो अभी भी चल रहीं है और CrPC 1861 में लागू हुई जिसे 1973 में modified किया गया। साथ ही 1856 में Hindu widow marriage act आया ईश्वर चंद विद्या सागर ने lead role play किया जो कि lord डलहौजी द्वारा।

अंग्रेजो ने इसी तरह हिंदुओं के मामलो में intervene करना शुरू कर दिया विशेष रूप से caste और gender के मामलो में।

लेकिन जब वो मुस्लिम कानूनों में intervene कर रहें थे तो विरोध उत्पन्न हो रहा था, जिसमें वो चुप ही रहे। तभी 1875 में special marriage Act पारित किया हिंदू मामलो में। इसके तहत Inter Caste और Inter Religious विवाह होने लगे sir हेनरी मेन द्वारा।

फिर बाद में marriage में age को लेकर laws आए-

1891- Age of consent act ( जिसमे girls की age 12 year fix कर दी)

1929- 30शारदा act ( child marriage restrain act, Boy’s-18, Girl’s- 14)

इसके बाद women property rights की बात आई जिसमें two system work करते थे मिताक्षरा और दायभाग कानून थे जिनमें महिलाओं को संपत्ति का अधिकार नही था। केवल पुरुषों का था इस से निपटने के लिए तीन act आए-

1874- Married women property rights act (स्त्रीधन)

1928- Hindu Inheritance (removal of disability act) इसमें महिलाओं को संपत्ति में अधिकार मिला

हालांकि after Independent Dr. B R Ambedkar ने कहा कि constitution implementation के process में ही UCC भी बन जाना चाहिए क्योंकि उनका मानना था कि हिंदू महिलाओं को depressed classes की बराबरी का right मिलना चाहिए और वो eqality तभी मिलेगी जब civil code बराबर या uniform होगा।

इसी बीच 1941 में Hindu Code Bill की debate शुरू हो गई साथ ही 1941 में B.N. Rao ने एक committee बनाई गई जिसका नाम Hindu Law Committee था। इसी में widow daughter को property में right की बात कही साथ ही separate resident के case में गुजारा भत्ता का प्रावधान भी हुआ और इस committee की report 1947 में constitution assembly में प्रस्तुत हुई। तभी Hindu code Bill के लिए एक select committee formed हुई जिसके head Dr. B. R. Ambedkar थे, क्योंकि आज़ादी के समय में वही law Minister थे। साथ ही इन्होंने Hindu Code Bill में पहली बार Divorce और Monogamy(single wife & single husband) का प्रावधान दिया जिससे Indian society में उस समय तहलका मच गया साथ ही Joint Family Property को लेकर प्रावधान दिया जिनसे women को property में rights ठीक ठाक मिलने वाला था। लेकिन एक अजीब बात यह थी कि First President of India Dr. Rajendra Prasad इस Hindu Code Bill के खिलाफ़ थे साथ ही कई famous और बड़े नेता इसके खिलाफ़ में थे लेकिन Dr. B.R. Ambedkar का मानना था कि आज़ादी का मतलब ये नहीं कि अंग्रेज़ चले जाए, आज़ादी का real mean है कि women और depressed classes को आज़ादी मिले। लेकिन एक ख़ास बात यह थी कि British Government चाहती थीं कि UCC एक ही बार में constitution में आ जाए लेकिन article 44 के तहत DPSP में सहमति बनी। इसी के चलते Hindu Code Bill के खिलाफ़ दलीलें आने लगीं और Dr. B. R. Ambedkar ने law Minister के पद से 1950 में resign दे दिया क्योंकि at that time Hindu Code Bill के मामले में Indian Parliament का आचरण ठीक नही था।

तभी एक Interesting स्थिति 1950 में create हुई Indian Constitution implement हो चुका है उसके बाद भी Hindu Code Bill पारित नही हो पा रहा साथ ही Dr. Ambedkar ने resign दे दिया। तभी 1951 के first election में एक political game खेला गया नेहरू जी को लगा कि 1951 के election में Hindu Code Bill को मुद्दा बनाकर चुनाव लड़ते है और जो Hindu Code Bill के favour में होंगे, लागू करने के लिए तो वह vote देंगे तभी नेहरू जी भारी बहुमत से जीत भी गए जिससे पूरे देश की legislative assembliesLoksabha उनके हाथ में आ गई कुल मिलाकर पूरे देश को चलाने की बागड़ोर उनके हाथ में आ गई और Hindu Code Bill को pass करने की शुरुआत 1952 में शुरू हो गई।

तभी Hindu Code Bill का bifercation कर दिया गया और इसको four part में divide कर दिया गया, पहला part 1953 में पारित हुआ और बाकी तीन 1956 में पारित हुए

1.    1. In 1955- Hindu Marriage Act

2.    2. In 1956- Hindu Succession Act

3.    3.  In 1956- Hindu Minority & Guardian ship Act

4.    4.  In 1956- Hindu Adoption & Maintenance Act

1. 1955 का Hindu Marriage Act इसमें बताया कि who was Hindus? जैसे कि और religions के अलावा Hindus में बहुत diversities है कुछ भी centralized नही है सब कुछ decentralized है कोई गीता, वेद, पुराण, रामायण, को मानते है ठीक ऐसे ही कोई धार्मिक संगठन नही है जोकि centralized और organized हो फिर ऐसा मानना बड़ा difficult होता है कि Hindu religion में कौन शामिल है और कौन नही है? और वह कौन सा define element है जिसके base पर किसी को Hindu व हिंदू धर्म से बाहर किया जा सके। लेकिन Hindu Marriage Act 1955 में define किया गया कि Hindu वह है जो Christian, Muslim, Jews, और Parsi नही है और Hindus में Buddhist, Jain, Sikhs भी शामिल है क्योंकि ऐसा मानना था कि ये सब Hindu religion से ही विकसित हुए है साथ ही वैष्णव, शैव, लिंगायत, आर्यसमाज, Bhramsamaj और प्रार्थना समाज भी हिंदुओं में शामिल है but Schedule Tribes में कुछेक पर Hindu Marriage Act implement नही होता। इसी में ऐसा system हुआ कि जो व्यक्ति hindu है एक ही Marriage करेगा जिसमें section 11 section 17 बहुत ही interesting है जिसमें If any person do Bigamy (two marriage) करता है तो उसे IPC-494 के under में punish किया जायेगा (7 साल की सज़ा) और अगर पहले से ही छिपा लेता है कि वह already married है और second marriage करता है उस case में 10 साल की सज़ा होगी। दूसरी interesting बात यह है कि इसमें पहली बार Divorce का system आया, तीसरी बात संपिंड विवाह ( यानि एक गोत्र का विवाह) father की तरफ से fifth generation और mother की तरफ से third generation तक विवाह नही होगा। चौथी बात unadult के case में parents ही शादी करेंगे यह चारों laws ठीक तरीक़े से काम कर रहे थे लेकिन Bigamy वाले प्रावधान को wrong prove करने के लिए कुछ लोगों ने नए प्रयोग शुरू कर दिए। इसका सबसे important case है सरला मुगदल case in 1995- यह कल्याणी Institution की  प्रमुख थी और इसमें चार cases quote किए गए जैसा कि हमने देखा कि 1955 के बाद से कोई भी Hindu एक ही marriage कर सकता है लेकिन Muslim Personal Law यह permit करता है कि एक male 4 विवाह कर सकता है क्योंकि IPC के section –494 Muslim पर लागू नही होता साथ ही इसका misuse होने लगा कई Hindus ने Islam करके Muslim बन गए और 4 marriage का right ले लिया। ऐसे ही cases को सरला मुदगल ने quote किया जिसमें से सबसे interesting था Jitendra Mathur का case जोकि हिंदू था और उसने पहली शादी एक हिंदू महिला से की but थोड़े समय बाद उसे एक Muslim महिला से प्रेम हो गया तो उसने अपना धर्मांतरण (conversion) कर Muslim बनकर एक मुस्लिम महिला से शादी कर ली परंतु थोड़े समय बाद वो वापिस अपनी पहली wife के पास वापस चला गया। तभी Hindu Marriage Act में यह प्रावधान किया गया कि married women अपने husbands को force कर सकती है कि वो second marriage के लिए conversion कर दूसरा विवाह न करें।

2. Hindu Succession Act 1956(हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम) इसमें मोटी बात यह थीं कि person की death के बाद उसकी property कैसे और किस person को मिलेगी। Hindus में एक book है याज्ञवल्क्य स्मृति है जिसके two explanation हुए मिताक्षरा (composed by विज्ञानेश्वर) और दायभाग (composed by जीमूतवाहन)। Hindu society में property का distribution मिताक्षरा और दायभाग के reference से होता था। दायभाग Assam और Bengal में prevalent था बाकि पूरे देश में मिताक्षरा prevalent था। इन दोनों में property का right बेटे (son) को मिलता था। मिताक्षरा में property के three division थे- By acquisition, By ancestoral, and others. जबकि दायभाग में property एक ही तरीके से मानी जाती थीं, In a simple way मिताक्षरा में property का right By birth से ही था but दायभाग में after the Father deaths. हालांकि Hindu Succession Act ने मिताक्षरा और दायभाग की व्यवस्था को समाप्त (abolish) कर दिया और एक Uniform System दिया, साथ ही Women को property में अधिकार मिला क्योंकि इससे पहले Women को only acquired करने का हक़ था but sell का नही।

3. Hindu Minority & guardianship act (1956)- इसमें कहा गया है कि legal marriage में Son -Daughter की जिम्मेदारी first Father की and second Mother की होगी और Illegal marriage के case में Illicit Son-Daughter की जिम्मेदारी first Mother की और second Father की। Wife की जिम्मेदारी Husband की होगी साथ ही Unadult की guardianship की बात करता है।

4. Hindu Adoption & Maintenance Act(1956)- Indian society में adoption rights only Hindus के पास ही है इसके अलावा और किसी religions को नही है। इसके तहत adoption child में parents उसके legal parents बन जायेंगे और property में adopted child का right भी होगा। और अगर कोई opposite gender के बच्चे को गोद ले रहा है तो 21 years का gap होना compulsory है साथ ही adopt उसी child को करेगा जिस sex का child उसके पास नही है।

Minorities Civil Laws- In India there are different minorities groups lived और we know that Christians is the second largest minority in India. Christian two types के होते है Catholic and Protestant, they both are formed due to religion reforms.

वैसे तो India की population का 2%-3% ही Christian जो south India में majority है। How Christian’s Civil law works?

हम जानते है कि Christians के civil law के मामलो में ज्यादा problem इसलिए face नही करनी पड़ी क्योंकि उनको बनाने वाली Government Britain Government थी। India में Christian civil law four laws पर based है-

1. Christian Marriage Act 1872

2. Indian Divorce Act 1869

3. Indian Succession Act 1925

4. Guardian & Wards Act 1890

1872 में कोई problem नही आई लेकिन Indian Divorce Act 1869 और Indian Succession Act 1925 में problem आई। Indian Succession Act 1925 के तहत A case went to the Court Marry Roy mother of अरुंधती रॉय, यह Kerala का case था जिसमें त्रावनकोर Succession Act 1916 के तहत इन्हें property में हिस्सा नही मिला क्योंकि त्रावनकोर में TSA लागू था जिसमें Daughters को property का right नही था तभी यह case 1986 में Supreme Court गया और 1986 में Court ने order दिया जो भी Christian Community Indian में रह रही है उन पर Indian Succession Act 1925 लागू होगा जिसमें Daughters को भी property में अधिकार था।

Second Case John Vellamottan का case था जो 2003 में Supreme Court में आया जिसमें Supreme Court ने UCC के बारे में Government of India को alert दिया कि they thought about UCC.

साथ ही Indian Divorce Act 1869 में two cases आए- 1. प्रगति वर्गलेज 1997 case- प्रगति वर्गीज and her Husband Gorge वर्गीज they both were living together but after some time due to some disputes प्रगति वर्गीज ने चाहा कि Divorce ले लूं ( IDA का Section-10 में यह लिखा था कि पति के पास right था कि Adultary के case में वह Divorce ले सकता है लेकिन पत्नी को Divorce के लिए Adultary के साथ Violence का मुद्दा भी होना चाहिए- for christian community ) तभी Supreme Court ने इसे Section-10 को ख़ारिज कर दिया और दोनों को बराबरी (eqality) का right दिया। तभी Indian Government 2001 में Indian Divorce Act में amendment कर दिया and 10A clause add कर दिया यदि Christian male spouse तलाक़ लेना चाहते है तो 2 years तक Judicial Seperation ( under the court surveillance) में रहना होगा।

इसी के तहत 2015 में Albert Anthony का case आया और Albert Anthony mutual consent से Divorce चाहिए जैसे Hindu Marriage Act के section 13B के तेहत होता है तभी Supreme Court ने Judicial Seperation को 1 year कर दिया गया।

Christian के बाद Parsian आते हैं इनकी population nearly 60k-62k है लेकिन ये बड़े ही progressive होते है काफ़ी successful होते है at every field, जैसे Tata Family, Godrej Family, Homi Jahangir Bhaba and Nani Palkiwala etc.

इनका भी civil sysytem four Act पर depend है- Parsi Marriage & Divorce Act 1936, India Succession Act 1926, Guardian & Wards Act 1890.

Muslim Personal Law

continued.........................


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